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Showing posts from August, 2017

chapter 7 बुद्धि तथा बहुआयामी बुद्धी (Construct of Intelligence and Multi-Dimensional Intelligence)

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बुद्धि तथा बहुआयामी बुद्धी (Construct of Intelligence and Multi-Dimensional Intelligence)     बुद्धि का सवरूप : अर्थ और परिभाषा   बुद्धि शब्द प्राचीन काल से व्यक्ति की तत्परता  समस्या समाधान की क्षमताओं के सन्दर्भ में प्रयोग होता है। सभी व्यक्ति समान योग्य नहीं होते। बौद्धिक योग्यता ही उनके आसमान होने का प्रमुख कारन है।  प्रत्येक मनोवैज्ञानिक का बुद्धि के सन्दर्भ में अलग  मत है। वुडवर्थ के मतानुसार बुद्धि कार्य करने की विधि है टर्मन के अनुसार बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है। वुडरो के अनुसार बुद्धि ज्ञान का अर्जन करने की क्षमता है। डियरबॉर्न के अनुसार बुद्धि सिखने या अनुभव से लाभ उठाने की क्षमता है। हेनमान के अनुसार ज्ञान में दो तत्व होते है, ज्ञान की क्षमता और निहित ज्ञान। बीने के अनुसार बुद्धि इन चार शब्दों में निहित है ज्ञान, अविष्कार, निर्देश, और आलोचना। थार्नडाइक के मतानुसार सत्य या तथ्य के दृष्टिकोण से उत्तम प्रतिक्रियाओं की शक्ति को ही बुद्धि कहते हैं। पिंटनर के अनुसार नई परिस्थितियों में सामंजस्य बनाने ...

chapter 6 बाल केंद्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा (Child Centered and Progressive Education)

HOME बाल केंद्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा (Child Centered and Progressive Education) बालकेन्द्रित शिक्षा शिक्षा बालक की मूल प्रवृत्तियों प्रेरणाओं और संवेगों पर आधारित होनी चाहिए ताकि उनकी शिक्षा को  नयी दिशा दी जा सके यदि उसमे कोई गलती है तो उसे ठीक किया जा सके इसके अंतर्गत बच्चों का शारीरिक व् मानसिक योग्यताओं का अध्ययन करके उनके आधार पर बच्चों की विकास में मदद करते हैं। जैसे  यदि कोई बच्चा मानसिक रूप से या शारीरिक से कमजोर है या आपराधिक गतिविधियों से जुड़ा है तो पहले उसकी उस कमी को दूर किया जाता है। कुछ शिक्षक मनोवैज्ञानिक ज्ञान के आभाव में मार पीट कर ठीक करने की कोशिश करते हैं परन्तु यह स्थिति को और खराब कर देगा। भारतीय शिक्षाविद गिजु भाई ने बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उन्होंने इसके लिए कई प्रसिद्द पुस्तकों की रचना की है जो बाल मनोविज्ञान शिक्षा शास्त्र एवं किशोर साहित्य से सम्बंधित हैं। बालकेन्द्रित शिक्षा की मुख्य विशेषताएं हैं - बालकों को समझना  किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए शिक्षक को बालक के मनोविज्ञान की पूरी जानकारी होनी चाहिए। इस...

chapter 5 पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत (Principle of Piaget, Kohlberg and Vygostky)

पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत (Principle of Piaget, Kohlberg and Vygostky) विकास की अवस्थाओं के  सिद्धांत(Principle of Development Stages) मानव विकास की वृद्धि के कई आयाम होते हैं ।   विकास की अलग अलग अवस्थाओं में बालक में विशेष गुण देखने को मिलते हैं। इनके आधार पर मनोवैज्ञानिक  अवस्थाओं के अनेक सिद्धांत बनाते हैं। विकास की अवस्थाओं से सम्बंधित सिद्धांतों में पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत विशेष रूप से प्रसिद्द हैं।   जीन प्याजे के विकास की अवस्थाओं के सिद्धांत  जीन प्याजै स्विट्ज़रलैंड के एक प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक थे । बच्चों में बुद्धि का विकास कैसे होता है यह जानने के लिए उन्होंने अपने ही बच्चो पर खोज की। जैसे जैसे वे बड़े हुए उनकी मानसिक विकास की क्रियाओं का बारीकी से अध्ययन किया गया। इन अध्ययनों के अनुसार जिन सिद्धांतों को बताया गया है वे पियाजे के मानसिक विकास  के नाम से जाने जाते हैं। संज्ञानात्मक विकास का अभिप्राय बच्चों की  एकत्रित करने की क्रिया से है। इसमें भाषा चिंतन समरण शक्ति और तर्क शामिल हैं।   पिया...

Chapter 4 समाजीकरण की प्रक्रिया (Process of Socialization)

समाजीकरण की प्रक्रिया  (Process of Socialization) http://htet786.blogspot.com/ समाजीकरण की प्रक्रिया तब शुरू हो जाती है जब अबोद्ध बालक का अपने माता पिता , परिवार के सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आना शुरू हो जाता है और फिर यह कार्य जीवन भर चलता है | बालक जैसे जैसे बड़ा होता है वैसे वैसे वह सहयोग सहानुभूति तथा सामाजिक मूल्यों एवं नियमों को अच्छी तरह घ्राण कर लेता है | किशोरावस्था के अंत तक बालक में सर्वाधिक परिपक्वता का विकास होता है | इस अवधि में सामाजिक चेतना को प्राप्त करता है , अधिक से अधिक मित्र बनाता है तथा समूह बनता है।   विभिन्न अवस्थाओं में समाजीकरण की प्रक्रिया  जन्म के बाद एक बालक का सामाजिक विकास भिन्न भिन्न अवस्थाओं में भिन्न भिन्न तरीकों से होता है।  जनका वर्णन निम्नलिखित है  1. शैवावस्था में सामाजिक विकास  इस काल में सामाजिक विकास की विशेषताएं इस प्रकार हैं १. स्वयं केंद्रित बालक २. माता पिता पर आश्रित बालक ३. सामाजिक खेल का विकास ४. स्पर्धा की भावना ५. मैत्री और सहयोग ६. सामाजिक स्वीकृति हरलॉक ने पहले दो वर्ष में ...

chapter 3 अनुवांशिकता एवं वातावरण का प्रभाव (Influence of Heredity and Environment)

   अनुवांशिकता एवं वातावरण का प्रभाव  (Influence of Heredity and Environment)  http://htet.blogspot.com/ वंशानुक्रम का अर्थ एवं परिभाषा  सामान्यतः लोग समझते है की माता पिता के गुण उनकी संतान में आ जाते हैं इसका मातार्थ है की बच्चा रंग रूप , आकृति , विद्वता आदि में माता पिता पर जाता है | अर्थात बालक ापने माता पिता के शारीरिक व् मानसिक गुण प्राप्त करेगा यदि माता पिता विद्वान् होंगे तो बालक भी विद्वान् होगा | परन्तु यह देखा गया है की कई बार विद्वान् माता पिता की संतान मुर्ख होती है तथा मुर्ख  पिता  संतान विद्वान् होती है | इसका कारन यह  की बालक को न केवाल अपने माता पिता के गुण प्राप्त होते हैं बल्कि अपने पहले के पूर्वजों के  प्राप्त होते हैं | इसी को वंशानुक्रम , वंश परम्परा, पैतृकता , अनुसंशिकता के नाम से  जानते हैं | बी. ऐन. झा.  के मतानुसार "वंशानुक्रम व्यक्ति  जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है |" पी जिसबर्ट के मतानुसार " प्रकृति में पीढ़ी का कार्य माता पिता द्वारा कुछ जैविकीय या मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का हस्तांतरण करना ...

chapter 2 बाल विकास के सिद्धांत (Principles of Child Development)

<< chapter 1 Chapter-2 बाल विकास के सिद्धांत  (Principles of Child Development) विकास परिवर्तन की वह अवस्था है जिसमे बालक भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था  गुजरता है | विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नयी नयी विशेषता प्रकट होती हैं| विकास की प्रक्रिया कैसे होती है इस पर मनोवैज्ञानिकों ने तर्क दिए हैं जिन्हे विकास के सिद्धांत कहते हैं | ये सिद्धांत इस प्रकार हैं http://ctet.competitionera.com/ 1. समान प्रतिमान का सिद्धांत  एक जाती के जीवों में विकास एक ही क्रम में ही पाया जाता है |  और विकास का प्रतिमान भी समान होता है | यही सिंद्धांत इंसानो पर भी लागु होता है | गेसेल ने भी इस सिद्धांत का समर्थन करते हुए कहा है की "यद्यपि दो इंसान एक जैसे नहीं होते परन्तु सभी सामान्य बच्चों के विकास का क्रम समान  है " चाहे वे दुनिया के किसी कोने में भी रहते हो  इसी सिद्धान की पुष्टि हरलॉक महोदय ने भी की है | 2. सामान्य से विशिष्ट क्रियाओं का सिद्धांत    बालक का विकास सामान्य क्रियाओ से विशिष्टता की और होता है | बालक कोई भी कार्य सामान्य ढंग से करता है...

chapter 1 विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध (Concept of Development and its Relationship with Learning)

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https://htet786.blogspot.in/ बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध   (Concept of Development and its Relationship with Learning) विकास की अवधारणा  किसी भी बच्चे की मानसिक, भावनात्मक, सामिजिक बौद्धिक आदि पक्षों में परिपक्वता बाल विकास कहलाती है | विकास में वे सभी परिवर्तन शामिल हैं जो जीवन भर चलते हैं | यह एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है जो जन्म से मृत्यु तक चलती है | कुछ मनोवैज्ञानिक विकास तथा वृद्धि को एक समान समझते हैं , परन्तु दोनों भिन्न हैं | शारीरिक सरंचना या आकार का बढ़ना वृद्धि कहलाती है जबकि सामाजिक, बौद्धिक, भावनात्मक तथा मानसिक पक्षों में परिपक्वता विकास कहलाती है | विकास में सभी परिणात्मक तथा गुणात्मक परिवर्तन शामिल हैं जो आजीवन चलते रहते हैं |  कहने का अभिप्राय है की विकास वृद्धि क बाद  चलता रहता है तथा विकास के बिना वृद्धि का कोई अर्थ नहीं है| वृद्धि एवं विकास की परिभाषा  Sumit Singh Bhayana अभिवृद्धि तथा विकास दोनों का सामान्यतः एक ही अर्थ समझा जाता है| परन्तु मनोवैज्ञानिको के अनुसार  दोन...