chapter 1 विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध (Concept of Development and its Relationship with Learning)

https://htet786.blogspot.in/
बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र
विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध  
(Concept of Development and its Relationship with Learning)
विकास की अवधारणा 
किसी भी बच्चे की मानसिक, भावनात्मक, सामिजिक बौद्धिक आदि पक्षों में परिपक्वता बाल विकास कहलाती है | विकास में वे सभी परिवर्तन शामिल हैं जो जीवन भर चलते हैं | यह एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है जो जन्म से मृत्यु तक चलती है | कुछ मनोवैज्ञानिक विकास तथा वृद्धि को एक समान समझते हैं , परन्तु दोनों भिन्न हैं | शारीरिक सरंचना या आकार का बढ़ना वृद्धि कहलाती है जबकि सामाजिक, बौद्धिक, भावनात्मक तथा मानसिक पक्षों में परिपक्वता विकास कहलाती है | विकास में सभी परिणात्मक तथा गुणात्मक परिवर्तन शामिल हैं जो आजीवन चलते रहते हैं | कहने का अभिप्राय है की विकास वृद्धि क बाद  चलता रहता है तथा विकास के बिना वृद्धि का कोई अर्थ नहीं है|

वृद्धि एवं विकास की परिभाषा 
Sumit Singh Bhayana
अभिवृद्धि तथा विकास दोनों का सामान्यतः एक ही अर्थ समझा जाता है| परन्तु मनोवैज्ञानिको के अनुसार  दोनों शब्दों में कुछ अंतर होता है | सोरेंसन (sorenson) के अनुसार अभिवृद्धि शब्द का सम्बन्ध शारीरिक वृद्धि से है इस वृद्धि को नपा और तोला जा सकता है | कंही न कंही विकास का सम्बन्ध अभिवृद्धि से होता तो है परन्तु यह शारीरिक वृद्धि के लिए केवल विशेष परिस्थितियों में ही प्रयोग होता है| जैसे की बालक की हड्डियां आकर में बढ़ती हैं तो यह अभी वृद्धि है परन्तु हड्डियों क मजबूत हो जाने  कारण यदि कोई परिवर्तन आया है तो यह विकास है | कई बार देखा गया है की बालक के शारीरिक विकास की तुलना में उसकी कार्यकुशलता में प्रगती नहीं हो पाती| ऐसी स्थिति में यह कहा जाता है कि बालक की वृद्धि तो हो गयी परन्तु विकास नहीं हुआ | इस प्रकार विकास शारीरिक अवव्यों की कार्य कुशलता को दर्शाता है| सोरेंसन (sorenson)  भी कहा है कि अभिवृद्धि को नाप सकते हैं परन्तु विकास वियक्ति की क्रियाओं में होने काले परिवर्तनों में अनुभव किया जा सकता है | विकास नई नई विशेषताओं तथा क्षमताओं  विकसित होना है जो गर्भावस्था से परिपक्वावस्था(maturity) तक चलता है | विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं तथा योग्यताएं प्रकट होती रहती हैं |
हरलॉक के अनुसार विकास की प्रक्रिया बालक की गर्भावस्था से उसकी मृत्यु तक एक क्रम में चलती है तथा प्रत्येक अवस्था का प्रभाव दूसरी अवस्था पर पड़ता है |
गेसेल के अनुसार विकास प्रत्यय से अधिक है इसे देखा जा सकता है तथा जांचा और किसी सीमा तक मुख्य तीन दिशाओं : शरीर अंक विश्लेषण , शरीर ज्ञान तथा व्यवहारत्मकता  मापा जा सकता है|

अभिवृद्धि तथा विकास में मुख्या अंतर :

अभिवृद्धि :
१. अभिवृद्धि का सवरूप बाह्य है|
२. अभिवृद्धि कुछ समय बाद रुक जाती है|
३. अभिवृद्धि का प्रयोग संकुचित अर्थ में होता है |
४. अभिवृद्धि में कोई निश्चित क्रम नहीं होता |
५. अभिवृद्धि की कोई निश्चित दिशा नहीं होती |
६. अभिवृद्धि को मापा जा सकता है जैसे ऊंचाई लम्बाई तथा भार  सकते हैं|

विकास :
१. विकास आंतरिक होता है |
२. विकास आजीवन चलता है|
३. विकास शब्द का व्यापक अर्थ होता है|
४. विकास में एक निश्चित क्रम होता है|
५. विकास की एक निश्चित दिशा होती है|
३. विकास को माप नहीं सकते बुद्धि को मापने का कोई नहीं है|

विकास की अवस्थाएं
प्रत्येक बच्चे के विकास  विभिन्न अवस्थाएं होती हैं| इन्ही में बच्चों का निश्चित विकास होता है | इसी बात को ध्यान में रखते हुए विकास को निम्न चरणों में बनता गया है|
१. बाल्यावस्था                    →                       जन्म से तीन वर्ष तक        
२. प्रारंभिक शैशवावस्था      →                        तीन से छह वर्ष
३. मध्य शैशवावस्था            →                        छह वर्ष से नौ वर्ष
४. अत्याशैशवावस्था            →                       नौ वर्ष से बारह वर्ष
५. पूर्व किशोरावस्था            →                        11 से 15 वर्ष
६. किशोरावस्था                 →                         15 से 18वर्ष
७. व्यस्क                          →                           18 वर्ष से ऊपर

रॉस महोदय के अनुसार विकास की अवस्थाएं : 
1.शैशवावस्था            →               1 से 5 वर्ष
2. बाल्यावस्था            →               5 से 12 वर्ष  
3. किशोरावस्था         →               12 से 18वर्ष  
4. प्रौढ़ावस्था              →               18 वर्ष से ऊपर


सोरेनसन सामाजिक विकास  अभिप्राय दुसरो क साथ मिल जुल कर चलने की बढ़ती हुई योग्यता से है
हरलॉक सामाजिक विकास से अभिप्रायः सामाजिक सम्बंधों  परिपक्वता प्राप्त करने से है |

उपरोक्त परिभाषाओं से निम्न तथ्य निकल कर सामने एते हैं : 
१. बच्चे के दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में एते ही उसके समाजीकरण की प्रक्रिया  जाती है |
२. सामाजिकरण की प्रक्रिया से व्यक्ति को अनेक सामाजिक गुणों को सिखने में सहायता प्राप्त होती है|
३. इस प्रकार से ज्ञान अर्जित करने वाला व्यक्ति समाज से भोत जल्दी तालमेल बिठा सकता है |

शैशवावस्था में सामाजिक विकास
इस अवस्था में बालक सामाजिकता से परे होता है| वह केवल  अपनी शारीरिक आवश्यकता को पूरा करने में लगा रहता है | बालक में  सामाजिक व्यहार तब दीखता है जब वह व्यक्तियों और वस्तुओ  अंतर समझने लगता है |
बाल्यावस्था में विकास
इस अवस्था में बच्चे में समूह बनाने की क्षमता का विकास हो जाता है|
किशोरावस्था में सामाजिक विकास  
किशोर विद्यार्थियों के साथ समूह बनाने की कोशिश करता है | लिंग सम्बन्धी चेतना का विकास हो जाता है| विशेष रुचियाँ जागृत हो जाती हैं |

नैतिक एवं भावनात्मक विकास
नैतिक विकास का अर्थ है बच्चों में नैतिक संकल्पना का विकास करना नैतिक संकल्पना के अंतर्गत ईमानदारी , सत्यनिष्ठा , निश्छलता की भावना का विकास करना `प्रत्येक समाज में कुछ कर्यों को सही और कुछ को गलत समझता है | बच्चों की नैतिक नैतिक एवं भावनात्मक विकास
नैतिक विकास का अर्थ है बच्चों में नैतिक संकल्पना का विकास करना नैतिक संकल्पना के अंतर्गत ईमानदारी , सत्यनिष्ठा , निश्छलता की भावना का विकास करना `प्रत्येक समाज में कुछ कर्यों को सही और कुछ को गलत समझता है | बच्चों की नैतिक संकल्पना का विकास भी इसी से जुड़ा है पहले वे  का विकास भी इसी से जुड़ा है पहले वे अपने परिवार तथा विद्द्यालय के माध्यम से समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार सीखते हैं | `इसके पश्चात वे सही गलत के सिद्धांत अथवा नियम सीखते हैं |

नैतिक विकास का स्वरूप 
समाज द्वारा स्वीकृत व्यव्हार को सिखने लिए काफी समय लगाना पड़ता है | हम अपेक्षा करते हैं कि बच्चे स्कूल में प्रवेश करने करने से पहले सामान्य स्थिति में सही गलत का अंतर करने की क्षमता विकसित हो चुकी होगी तथा उसे एक अच्छे या बुरे में अंतर करने की समाझ होगी | अच्छा व्यक्ति बनने के लिए सबसे पहले समाज के कानूनों कानूनों, नियमों और  रिवाजो का पालन करना अनिवार्य होता है अब तक बच्च यह सीख जाते हैं की यदि वे परिवार तथा समाज द्वारा निर्धारित नैतिक मूल्यों का पालन नहीं करि तो उन्हें दण्डित भी किया जा सकता है या उनके इस व्यहवार को समाज द्वारा स्वीकृति नहीं मिलेगी|

संवेगात्मक विकास 
संवेग व्यक्ति क आवेश को व्यक्त करता है | भय , क्रोध , घृणा ,वातसल्य ,करुणा , आश्चर्य कुछ प्रमुख संवेग हैं | संवेगों का मानव जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है | धनात्मक संवेग व्यक्ति के व्यवहार को परिपूर्ण बनाता है संवेग की स्थिति में व्यक्ति की सोचने की क्षमता शिथिल पद जाती है | शैशवावस्था में संवेगात्मक व्यव्हार अस्थिर होता है जो बाल्यावस्था तक स्थिरता की और अग्रसर होने लगता है किशोरावस्था में संवेग प्रायः उग्र  होते हैं वंशानुक्रम , योग्यता पारिवारिक वातावरण  संवेगात्मक को प्रभावित करते हैं | अध्यापक गण बच्चों के संवेगात्मक  विकास को सही दिशा दे सकते हैं |

मानसिक विकास 
मानसिक विकास से अभिप्राय शक्तियों तथा सम्वेदनशीलता ,अवलोकन , स्मृति ध्यान , कल्पना ,चिंतन बूढी , तर्क अदि में वृदि से आता है शैशवावस्था तथा बाल्यावस्था में में मानसिक विकास अत्यंत तीव्र गति से होता है
पियाजे के अनुसार संज्ञात्मक विकास की चार अवस्थाएं हैं संवेदात्मक गामक अवस्था , पूर्व सक्रियात्मक अवस्था बी, मूर्त सक्रियात्मक अवस्था तथा औपचारिक सक्रियात्मक अवस्था |  पियाजे ने संगठन तथा अनुकूल योग्यताओं को संज्ञानात्मक कार्य की दो प्रमुख विशेषता बताया है |
ब्रूनर ने क्रियात्मक प्रतिबिम्बात्मक तथा संकेतात्मक नमक तीन अवस्थाओं में संज्ञानात्मक  वर्गीकृत किया है तथा इसे समझने का प्रयास किया है | मानसिक विकास अनेक करक जैसे वंशानुक्रम , वातावरण , स्वस्थ्य , शिक्षा ,समाज अदि को प्रभवित करते हैं |

विकास को प्रभावित करने वाले कारक
१. वंशानुक्रम -  कुछ पैतृक गुण पीढ़ी दर  पीढ़ी हस्तांतरित होते रहते हैं | बालक का कद आकृति , बूढी चरित्र अदि को भी वंशानुक्रम सम्बन्धी विशेषताएं प्रभावित करतेी हैं | अनुसंधानों के आधार पर देखा गया है की चरित्रहीन माता पिता के बालक भी चरित्रहीन ही होते हैं |
२. वातावरण वातावरण भी बालक के विकास को प्रभावित करने वाला तत्त्व है | वातावरण के प्रभाव से व्यक्ति में अनेक विश्वेष्टाओं का विकास होता है | शैशवावस्था से ही वातावरण जीवन को प्रभावित करने लगता है | धीरे धीरे बालक उस अवस्था को प्राप्त कर लेता है जिसमे वह उस योग्यता को प्राप्त कर लेता जिसमे वह वातावरण को प्रभावित्र कर सके|
३. बुद्धि  ममनोवज्ञानिकों क अनुसार तीव्र बूढी वाले बालकों का शारीरिक तथा मानसिक विकास भी जल्दी होता हैं | वंही मंदबुद्धि बच्चों का विकास बहुत ही धीरे होता है वे धीरे बोलना व् छलना सीखते हैं |
४. लिंग बालकों के शारीरिक, सामाजिक तथा मानसिक विकास पर लिंग भेद का भी प्रभाव पड़ता है | जन्म के समय बालको का आकार बालिकाओं से बड़ा होता है किन्तु बाद में बालिकाओं का शारीरिक विकास तीव्र होता है | बालिकाओं में मानसिक तथा योन परिपक्वता बालकों से पहले अति है |
५. अंतः स्त्रावी ग्रंथियां बच्चों के शरीर में अनेक अन्तः स्त्रावी ग्रंथियां होती हैं जिनमे से हार्मोन निकलते हैं यही बच्चों कके विकास को प्रभावित करते हैं | यदि ये उचित मात्रा में न् निकले तो विकास पर बहुत बुरा प्रभाव  पड़ता है | उदाहरण क लिए यदि गाल ग्रंथि से थाइराक्सिन नाम का हार्मोन न निकले तो बच्चा बोना रह सकता है |
६. जन्म क्रम अध्यनों में पता चलता है की परिवार में पहले जन्मे बालक की तुलना में दूसरे तीसरे बच्चे का विकास तीव्र  होता है क्योंकि वे पूर्व  बालक से बहुत कुछ सिख लेते हैं |
७. भयंकर चोट अथवा रोग बिमारियों के कारन भी बालक का शारीरिक विकास अवरुद्ध होता है तथा सर में लगी भहारी चोट के कारन मानसिक विकास में बढ़ा उत्त्पन होती है |
८. पोषाहार सन १९५५ में वॉटरलू ने एक अध्यन के बाद यह बताया था की कुपोषण से बच्चों का मानसिक व् शारीरिक विकास बुरी तरह प्रभावित होता है |
९. शुद्ध वायु एवं प्रकाश शुद्ध वायु एवं प्रकश न मिलने क कारण बालक विभिन्न रोगो का शिकार हो जाता जिससे बालक के विकास में बढ़ा उतपन होती है |
प्रजाति प्रजातीय प्रभाव से बच्चों के विकास में विभिन्नता पाई जाती है | अध्ययन में पाया गया है कि उत्तरी यूरोप की तुलना में भूमधीय सागरीय बच्चे तेज़ी से विकास करते हैं |

विकास और अधिगम का सम्बन्ध 
अधिगम बच्चे के शारीरिक तथा मानसिक स्तर पर प्रभाव डालते हैं | इस स्तर पर बच्चा विकास करता है और कुछ  न कुछ सिखने की कोशिश करता है | कुछ व्यवहार बच्चों में वंशानुगत आ जाते हैं जैसे चलना , दौड़ना , बैठना आदि मूलभूत गतिविधियां बच्चा अपने आप सिख लेता है | इसके लिए उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती|  दूसरी तरफ अधिगम की प्रक्रिया कुछ अर्जित करने को कहते हैं | कुछ ऐसी क्रियाएं हैं जिनको सिखने क लिए बच्चे को परिश्रम करना पडता है जैसे पढ़ना लिखना आदि अधिगम क्रियाएं हैं |

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (correct answers are highlight with green)

1. पियाजे के अनुसार निम्नलिखित में से  अवस्था है जिसमे बालक अमूर्त संकल्पनाओं के विषय में तार्किक चिंतन आरम्भ करता है
१. मूर्त सक्रियत्मक अवस्था (7- 11)                                                              (ctet-2011)
२. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (11 वर्ष से ऊपर)
३. संवेदी प्रेरक अवस्था ( जन्म से 2 वर्ष तक )
४. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष)

2. बच्चों में बौद्धिक विकास की चार विशिष्ट अवस्थाओं की पहचान की गयी
१. कोहलबर्ग द्वारा                                                                                (ctet, uptet 2011)
२. स्किनर द्वारा
३. एरिक्सन द्वारा
४. पियाजे द्वारा 

3. "विकास कभी न समाप्त होने वाली प्रिक्रिया है" यह विचार किस से सम्बंधित है ?
१. अन्तः सम्बन्ध का सिद्धांत                                                                 (ctet-2011)
२. निरंतरता का सिद्धांत 
३. एकीकरण का सिद्धांत
४. अन्तः क्रिया का सिंद्धांत

4. प्राथमिक स्तर पर एक शिक्षक में निम्न में से किसे सबसे सबसे महत्वपूर्ण विशेषता मनना चाहिए ?
१. पढ़ाने की उत्सुकता                                                                          (ctet2011)
२. धैर्य और दृढ़ता 
३. शिक्षण पद्धतियों और  दक्षता
४. अतिमानक भाषा में पढ़ाने में दक्षता

5. निम्न में से कोण सा शिक्षार्थियों में सृजनात्मकता का पोषण करता है ?
१. अच्छी शिक्षा के व्यावहारिक मूल्यों के लिए विद्यार्थियों का शिक्षण          (ctet 2011)
२. प्रत्येक शिक्षार्थी का अन्तर्जात प्रतिभाओं का पोषण करना एवं प्रश्न करने के अवसर उयलब्ध करवाना 
३. विद्यालयी जीवन के प्रारम्भ में उपलब्धि के लक्ष्यों पर बल देना
४. परीक्षा में अच्छे अंको के लिए उन्हें कोचिंग देना

6. वह अवस्था जब बच्चा तार्किक रूप से वस्तुओं व् घटनाओं के विषय  चिंतन प्रारम्भ करता है
१. संवेदी प्रेरक अवस्था
२. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था
३. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
४. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था 

7. निम्नलिखित में से  अवस्था में   अपने समवयस्क समूह के सक्रिय सदस्य ही जाते हैं
१. किशोरावस्था 
२. प्रौढ़ावस्था
३. पूर्व बाल्यावस्था
४. बाल्यावस्था

8. निम्न में से शिक्षण की खेल विधि आधारित है
१. शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों  सिद्धांत पर
२. शिक्षण की विधियों के सिद्धांत पर
३. विकास एवं वृद्धि के मनोविज्ञानिक सिद्धांत पर
४. शिक्षण के सामाजिक सिद्धांत पर

9. बच्चों के संज्ञानात्मक विकास को सबसे अच्छे तरीके से कंहा परिभाषित किया जाता है
१. खेल के मैदान में
२ विद्यालय एवं कक्षा में 
३.ऑडिटोरियम में
४. गृह में

10. निम्न में से कोन पियाजे के अनुसार बौद्धिक विकास का निर्धारक तत्व नहीं है ?
१. सामाजिक संचरण
२. अनुभव
३. सन्तुलिकरण
४. इनमे से कोई नहीं

11. बालको की सोच अमूर्तता  अपेक्षा मूर्त अनुभवों एवं प्रत्यों से होती है यह अवस्था है
१. 7 से 12 वर्ष तक 
२. 12 से वयस्क तक
३. 2 से 7 वर्ष तक
४. जन्म से 2 वर्ष तक


12. विकास के सन्दर्भ निम्न में कोनसा कथन सत्य नहीं है ?
१. विकास की प्रत्येक अवस्था में अपने खतरे हैं
२. विकास उकसाने या बढ़ावा देने  नहीं होता है 
३. विकास सांस्कृतिक परिवर्तनो से प्रभावित होता है
४. विकास की प्रत्येक अवस्था की अपनी विशेषता होती है

13 . निम्न में से कोन सा विकासात्मक कार्य उत्तेर बाल्यावस्था के लिए उपयुक्त नहीं है 
१. सामान्य खेलों के लिए आवश्यक शारीरिक कुशलता प्राप्त करना
२. पुरषोचित या स्त्रियोचित सामाजिक भूमिका को प्राप्त करना 
३. वैयक्तिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करना
४.अपने हमउम्र रहना सीखना

14. विकास का अर्थ है 
१. परिवर्तनों की उत्तरोतर  श्रृंखला
२. अभिप्रेरणा एवं अनुभवों के फलस्वरूप परिवर्तनों की उत्तरोतर  श्रृंखला
३. अभिप्रेरणा एवं  अनुभव के फलस्वरूप परिवर्तनों की उत्तरोतर  श्रृंखला
४. परिपक्वता एवं अनुभव के फलसवरूप परिवर्तनों की उत्तरोतर  श्रृंखला 

15. खिलौनों की आयु कहा जाता है
१. पूर्व बाल्यावस्था को 
२. उत्तर बाल्यावस्था                                                                             (rtet 2011)
३. शैशवावस्था को
४. ये सभी




Comments

  1. Good notes for study. Plz upload more chapter with questions.
    Thank you sirji.

    ReplyDelete
  2. http://ctet.competitionera.com/ logon this site daily to find new updates

    ReplyDelete
  3. thank you. keep log on for more updates

    ReplyDelete
  4. I wish you from bottom of my heart.

    ReplyDelete
  5. Sir pdf file mil.jayegi kya

    ReplyDelete
  6. It's very helpful. . Thank you so much. ... .

    ReplyDelete
  7. Ctet ke sabhi papers ke PDF prapt Karna hai

    ReplyDelete
  8. Ctet ke sabhi papers ke PDF prapt Karna hai

    ReplyDelete
  9. Replies
    1. Pankaj prajapat



      इसमे वयस्क अवस्था के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं दी गई है

      Delete
  10. thanks for comments i'll try to make it better.

    ReplyDelete

Post a Comment

thank you for feed back.

Popular posts from this blog

chapter 5 पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत (Principle of Piaget, Kohlberg and Vygostky)

Chapter - 8 भाषा और विचार (Language and Thought)