Chapter - 8 भाषा और विचार (Language and Thought)
Chapter - 8 भाषा और विचार (Language and Thought)
भाषा क्या है ?
भाषा विचारो को अभिव्यक्त करने का मानव द्वारा निर्मित साधन है। यह कोई अनुवांशिक क्रिया नहीं है यह बालक द्वारा अनुकरण एवं प्रयासों द्वारा ग्रहण की जाती है। विश्वकोष के अनुसार भाषा ध्वनि, प्रतीकों अथवा संकेतों की ऐसी व्यस्था है जिससे एक समूह के लोग आपस में विचारों का आदान प्रदान कर सकते हैं।
अभिलक्षण
भाषा विचार व्यक्त करने का एक सांकेतिक साधन है।
भाषा विचारों से सम्बंधित है।
भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है यह एक अर्जित संपत्ति है
भाषा की कला अनुकरण द्वारा प्राप्त होती है।
हर भाषा की अपमी सीमा होती है और अलग सरंचना होती है।
भाषा सभ्यता तथा संस्कृति का हिस्सा है।
भाषा शिक्षण के सिद्धांत
1. भाषा मिश्रण का सिद्धांत
बालक जिस प्रकार के भी सामाजिक वातावरण में रहता है वह वंहा से स्वयं ही सीखना शुरू कर देता है। आरम्भ में बालक अनुकरण करके ध्वनियों को बोलना सीखता है। फिर बड़ों की बातों को समझ कर उनसे बात करने की कोशिश करता है। फिर वह उन करियों को करता है जिनमे उनकी रूचि होती है। मिश्रण के इस समय में भी बालक की इन स्वाभाविक रुचियों का ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे बच्चा बड़ी आसानी से चीजें सीखता है। शिक्षण को उत्तम बनाने के लिए शिक्षक को चाहिए बालक की रुचियों , क्षमताओं, योग्यताओं एवं आवश्यकताओं आदि को ध्यान में रख कर शिक्षण के कार्य को संपन्न करे। भाषा शिक्षण के कुछ सामान्य सिद्धांत निम्न हैं।
रूचि का सिद्धांत।
कोई वास्तु दिखा कर।
खेल खेल में सीखा कर।
उनके जीवन की किसी घटना से जोड़कर।
पूर्व अर्जित ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान को जोड़ कर।
बालक की योग्यताओं के अनुसार प्रश्न पूछ कर।
क्रिया का सिद्धांत
शिक्षण के समय बालकों से अधिक से अधिक क्रियाएं करवाकर शिक्षण को और बेहतर बनाया जा सकता है।
जैसे -
कक्षा में कोई पाठ बोलकर बालकों से अनुकरण पाठ करवाकर उन्हें सक्रिय किया जा सकता है।
बालकों को कहानियां सुना कर उनसे प्रश्न पूछ कर भी उन्हें क्रियाशील रखा जा सकता है।
उन्हें अपने अर्जित ज्ञान को लिखकर अभिव्यक्त करने का अवसर देकर भी उन्हें सक्रिय कर सकते हैं।
स्वाभाविकता का सिद्धांत
बालक जब गोद में होता है तब से ही वह भाषा सीखना शुरू कर देता है जैसे जैसे वह बड़ा होता है वह अपने आस पास के लोगों से सीखता है। इस प्रकार वह किसी भाषा को बोलना तथा सुनना सीख जाता है।
वैयक्तिक भिन्नता सिद्धांत
सभी बालकों की योग्यता , उनकी रूचि तथा उनकी सिखने की क्षमता अलग अलग होती है अतः शिक्षक को इन बातों का ध्यान रखते हुए शिक्षण का कार्य करना चाहिए।
अनुपात और क्रम का सिद्धांत
लिखित और मौखिक दो प्रकार की भाषा होती है। मौखिक को सिखने के लिए बालक को बोलना व् सुनना पड़ता है और लिखित को सिखने के लिए बालक को पढ़ना व लिखना सिखना पड़ता है।
विकास की विभिन्न अवस्थाओं में भाषा विकास की विशेषताएं
बाल्यावस्था में भाषा विकास की विशेषताएं
तीन चार वर्ष तक बालक केवल आतम केंद्रित शब्दों का ही प्रयोग करता है जैसे माता को पुकारना दूध मांगना पानी मांगना आदि। तीन चार वर्ष की आयु में जब स्कूल जाना आरम्भ करता है तब उसका ज्ञान बढ़ता है वह अपने अास पास होने वाली घटनाओं जानना चाहता है। बाल्यकाल में बालक के पास चार वर्ष की आयु में उसके शब्द भंडार में सोलह सौ शब्द साढ़े चार वर्ष की आयु में उन्नीस सौ शब्द तथा पांच वर्ष की आयु में इक्कीस सौ शब्द हो जाते हैं। छति में पढ़ने वाले बालाक के शब्द बन्दर में पच्चास हज़ार तथा दसवीं के बालक के भंडार में अस्सी हज़ार शब्द होते हैं।
पूर्वकिशोरावस्था में भाषा विकास की विशेषताएं
इस अवस्था में किशोर लगभग पूर्ण रूप से भाषा सीख चूका होता है।
वह भाषा का प्रयोग करते हुए तर्क वितर्क भी करता है।
इस अवस्था में किशोर कोडवर्ड जैसी गुप्त भाषा का प्रयोग भी करते हैं।
किशोरों की कल्पनाएं भी भाषा से से विकसित होती हैं।
भाषा का विकास किशोरों के चिंतन का आधार भी होता है।
किशोरावस्था में भाषा विकास की विशेषता
किशोरावस्था में किशोर का शब्दकोष काफी बड़ा हो जाता है। आर्थिक व सामाजिक रूप से सुदृढ़ परिवार के बालकों में शब्द चयन का विकास निम्न स्थिति वाले परिवारों की अपेक्षा अच्छा होता है। इस अवस्था में बालक जटिल वाक्य भी बोलना सिख लेता है। इस अवस्था में बालक साहित्य अदि पढ़ने में रूचि दिखाता है। वह चित्रों और कहानियों माध्यम से भी अपनी भावनाएं व्यक्त करता है। स्टैनफोर्ड बीने मापदंड के अनुसार किशोर के शब्द चयन का विकास इस क्रम में होता है १४ वर्ष में ९०००, १६ वर्ष में ११७०० और १८ वर्ष में १३५०० शब्द। भाषा के माद्यम से ही बालक विचार करना सीखते हैं। यही विचार उनके भविष्य की झलक दिखते हैं।
विचार
भाषा शिक्षण एक प्रकार का सम्प्रेषण है। सम्प्रेषण का अर्थ है किसी विचार या सन्देश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित करने वाले द्वारा भेजना तथा प्राप्त करने वाले द्वारा प्राप्त करना। प्रेषण सफल तभी कहा जाता है जब दोनों सहयोगात्मक प्रकिया मे हिसा लें। शिक्षक भाषा सम्प्रेषण के द्वारा बालक को अपने भाव, कौशल, सूचना, आदि सीखने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया में शिक्षक और बालक दोनों को उस भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य है। बालक अपनी अनुक्रिया विचारों के रूप में व्यक्त करता है। ये विचार शिक्षक द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में भी हो सकते हैं या कोई अन्य रूप भी हो सकता है। सम्प्रेषण कम आने वाले बाधक तत्वों को दूर करके शिक्षक बालक के विचारों को और अधिक प्रभावशाली बना सकता है।
विचारों के प्रकार
विचारों के दो प्रकार होते हैं
1. शाबदीक विचार ये विचार उन सूचनाओं से सम्बन्ध रखते है जो शाब्दिक रूप में भेजे जाते हैं। शब्दिक विचार निम्न प्रकार के होते हैं
१. मौखिक विचार जिनका आदान प्रदान बोलकर या सुन कर होता है वे मौखिक विचार होते हैं। जैसे बालकों का आपस में बात चीत करना।
२. दृष्टी विचार ऐसे विचार जिन्हे बालक देखकर समझता है वे दृष्टि विचार होते हैं। जैसे पोस्टर और चार्ट।
३. मौखिक दृष्टि विचार ऐसे विचार जिन्हे बालक देख और सुन तो सकता है परन्तु अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे सकता है। जैसे टीवी देखना आदि।
४. लिखित विचार ऐसे विचार जिन्हे बालक पढ़ कर अथवा लिख कर व्यक्त करता है और समझता है जैसे पत्र लिखना और समाचारपत्र पढ़ना
2. अशाब्दिक भाषा ऐसी भाषा जिसमे न तो बालक मौखिक रूप से कुछ बोलता सुनता है और न ही लिखता पढता ही है।
a) शारीरिक भाषा ऐसी भाषा जिसमे शरीर के भागों के द्वारा विचारों का आदान प्रदान होता है शारीरिक भाषा कहलाती हैं जैसे हाथ हिलना,ऊँगली दिखाना।
b) कूट भाषा कई बार विचारों को व्यक्त करने के लिए कई प्रकार के कूट प्रयोग में लाये जाते हैं जिनका कोई शाब्दिक अर्थ नहीं होता इनका अर्थ पहले से सुनिश्चित किया जाता है।
बालक के भाषा विकास और विचारों को प्रभावित करने वाले तत्व
1. लिंग भेद जन्म के पश्चात् प्रथम वर्ष बालकों में भाषा विकास अथवा विचारों में किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं पाया जाता परन्तु दूसरा वर्ष लगते ही यह अंतर स्पष्ट होने लगता है। लड़कियां जल्दी बोलने लगती हैं। भाषा विकास में लड़कियां हर प्रकार से लड़को से आगे होती हैं जैसे शब्द भंडार, वाक्यों की लम्बाई, उच्चारण और उनकी शुध्दता। काफी बड़ी अवस्था तक लड़कियां लड़कों से श्रेष्ठ बानी रहती हैं। परन्तु पूर्ण विकास की अवस्था तक अक्सर लड़के लड़कियों से आगे निकल जाते हैं।
2. बुद्धि विभिन्न परीक्षणों में पाया गया है की बुद्धि और भाषा विकास का भोत गहरा सम्बन्ध है। जिस बालक की तीव्र बुद्धि होती है वह जल्दी बोलना सीख जाता है तथा मंदबुद्धि बालक बोलना सीखने में तीन चार वर्ष तक भी पिछड़ जाता है। जो बालक प्रारंभिक वर्षों में भाषा में अधिक तीव्र होते हैं वे विचारों की अभिव्यक्ति करने में आगे होते हैं।
3. स्वस्थ्य जो बालक जीवन के प्रारंभिक वर्षों में अधिक बीमार होता है वह अन्य बालकों के संपर्क में काम अत है तथा उसके कहे उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है जिससे उसको कोई प्रेरणा नहीं मिलती और उसके भाषा विकास में अवरोध उत्पन हो जाता है। कुछ प्रकार के शारीरिक विकार जैसे तालु, कंठ दन्त, जबाड़ों आदि में गड़बड़ के कारण भी भाषा विकास में मंदी अाति है।
4. पारिवारिक सम्बन्ध बालक भाषा विकास पर परिवार से संबंधों का भोत प्रभाव पड़ता है जैसे यह अत्यंत महत्वपूर्ण है की माता पिता बालक के साथ कैसा व्यव्हार करते हैं वे उसको अत्यधिक् प्रेम करते है या उसे डांटते झिडकते रहते हैं। इसका प्रभाव सीधा बालकों के भाषा विकास पर पड़ता है। जिस परिवार में बालकों की संख्या अधिक होती है वंहा माता बालकों का उचित ध्यान नहीं रख पाते जिससे बालकों का भाषा विकास धीमा होता है। एक बालक का विकास जुड़वाँ बालकों की तुलना में अधिक तीव्र होता है क्योंकि जुड़वाँ बालकों को अनुकरण के कम अवसर मिलते हैं। सामान्य परिवार में पलने वाले बालक का भाषा विकास अनाथालय में पलने वाले बालक की तुलना में अधिक तीव्र होता है।
भाषा क्या है ?
भाषा विचारो को अभिव्यक्त करने का मानव द्वारा निर्मित साधन है। यह कोई अनुवांशिक क्रिया नहीं है यह बालक द्वारा अनुकरण एवं प्रयासों द्वारा ग्रहण की जाती है। विश्वकोष के अनुसार भाषा ध्वनि, प्रतीकों अथवा संकेतों की ऐसी व्यस्था है जिससे एक समूह के लोग आपस में विचारों का आदान प्रदान कर सकते हैं।
अभिलक्षण
भाषा विचार व्यक्त करने का एक सांकेतिक साधन है।
भाषा विचारों से सम्बंधित है।
भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है यह एक अर्जित संपत्ति है
भाषा की कला अनुकरण द्वारा प्राप्त होती है।
हर भाषा की अपमी सीमा होती है और अलग सरंचना होती है।
भाषा सभ्यता तथा संस्कृति का हिस्सा है।
भाषा शिक्षण के सिद्धांत
1. भाषा मिश्रण का सिद्धांत
बालक जिस प्रकार के भी सामाजिक वातावरण में रहता है वह वंहा से स्वयं ही सीखना शुरू कर देता है। आरम्भ में बालक अनुकरण करके ध्वनियों को बोलना सीखता है। फिर बड़ों की बातों को समझ कर उनसे बात करने की कोशिश करता है। फिर वह उन करियों को करता है जिनमे उनकी रूचि होती है। मिश्रण के इस समय में भी बालक की इन स्वाभाविक रुचियों का ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे बच्चा बड़ी आसानी से चीजें सीखता है। शिक्षण को उत्तम बनाने के लिए शिक्षक को चाहिए बालक की रुचियों , क्षमताओं, योग्यताओं एवं आवश्यकताओं आदि को ध्यान में रख कर शिक्षण के कार्य को संपन्न करे। भाषा शिक्षण के कुछ सामान्य सिद्धांत निम्न हैं।
रूचि का सिद्धांत।
कोई वास्तु दिखा कर।
खेल खेल में सीखा कर।
उनके जीवन की किसी घटना से जोड़कर।
पूर्व अर्जित ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान को जोड़ कर।
बालक की योग्यताओं के अनुसार प्रश्न पूछ कर।
क्रिया का सिद्धांत
शिक्षण के समय बालकों से अधिक से अधिक क्रियाएं करवाकर शिक्षण को और बेहतर बनाया जा सकता है।
जैसे -
कक्षा में कोई पाठ बोलकर बालकों से अनुकरण पाठ करवाकर उन्हें सक्रिय किया जा सकता है।
बालकों को कहानियां सुना कर उनसे प्रश्न पूछ कर भी उन्हें क्रियाशील रखा जा सकता है।
उन्हें अपने अर्जित ज्ञान को लिखकर अभिव्यक्त करने का अवसर देकर भी उन्हें सक्रिय कर सकते हैं।
स्वाभाविकता का सिद्धांत
बालक जब गोद में होता है तब से ही वह भाषा सीखना शुरू कर देता है जैसे जैसे वह बड़ा होता है वह अपने आस पास के लोगों से सीखता है। इस प्रकार वह किसी भाषा को बोलना तथा सुनना सीख जाता है।
वैयक्तिक भिन्नता सिद्धांत
सभी बालकों की योग्यता , उनकी रूचि तथा उनकी सिखने की क्षमता अलग अलग होती है अतः शिक्षक को इन बातों का ध्यान रखते हुए शिक्षण का कार्य करना चाहिए।
अनुपात और क्रम का सिद्धांत
लिखित और मौखिक दो प्रकार की भाषा होती है। मौखिक को सिखने के लिए बालक को बोलना व् सुनना पड़ता है और लिखित को सिखने के लिए बालक को पढ़ना व लिखना सिखना पड़ता है।
विकास की विभिन्न अवस्थाओं में भाषा विकास की विशेषताएं
बाल्यावस्था में भाषा विकास की विशेषताएं
तीन चार वर्ष तक बालक केवल आतम केंद्रित शब्दों का ही प्रयोग करता है जैसे माता को पुकारना दूध मांगना पानी मांगना आदि। तीन चार वर्ष की आयु में जब स्कूल जाना आरम्भ करता है तब उसका ज्ञान बढ़ता है वह अपने अास पास होने वाली घटनाओं जानना चाहता है। बाल्यकाल में बालक के पास चार वर्ष की आयु में उसके शब्द भंडार में सोलह सौ शब्द साढ़े चार वर्ष की आयु में उन्नीस सौ शब्द तथा पांच वर्ष की आयु में इक्कीस सौ शब्द हो जाते हैं। छति में पढ़ने वाले बालाक के शब्द बन्दर में पच्चास हज़ार तथा दसवीं के बालक के भंडार में अस्सी हज़ार शब्द होते हैं।
पूर्वकिशोरावस्था में भाषा विकास की विशेषताएं
इस अवस्था में किशोर लगभग पूर्ण रूप से भाषा सीख चूका होता है।
वह भाषा का प्रयोग करते हुए तर्क वितर्क भी करता है।
इस अवस्था में किशोर कोडवर्ड जैसी गुप्त भाषा का प्रयोग भी करते हैं।
किशोरों की कल्पनाएं भी भाषा से से विकसित होती हैं।
भाषा का विकास किशोरों के चिंतन का आधार भी होता है।
किशोरावस्था में भाषा विकास की विशेषता
किशोरावस्था में किशोर का शब्दकोष काफी बड़ा हो जाता है। आर्थिक व सामाजिक रूप से सुदृढ़ परिवार के बालकों में शब्द चयन का विकास निम्न स्थिति वाले परिवारों की अपेक्षा अच्छा होता है। इस अवस्था में बालक जटिल वाक्य भी बोलना सिख लेता है। इस अवस्था में बालक साहित्य अदि पढ़ने में रूचि दिखाता है। वह चित्रों और कहानियों माध्यम से भी अपनी भावनाएं व्यक्त करता है। स्टैनफोर्ड बीने मापदंड के अनुसार किशोर के शब्द चयन का विकास इस क्रम में होता है १४ वर्ष में ९०००, १६ वर्ष में ११७०० और १८ वर्ष में १३५०० शब्द। भाषा के माद्यम से ही बालक विचार करना सीखते हैं। यही विचार उनके भविष्य की झलक दिखते हैं।
विचार
भाषा शिक्षण एक प्रकार का सम्प्रेषण है। सम्प्रेषण का अर्थ है किसी विचार या सन्देश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित करने वाले द्वारा भेजना तथा प्राप्त करने वाले द्वारा प्राप्त करना। प्रेषण सफल तभी कहा जाता है जब दोनों सहयोगात्मक प्रकिया मे हिसा लें। शिक्षक भाषा सम्प्रेषण के द्वारा बालक को अपने भाव, कौशल, सूचना, आदि सीखने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया में शिक्षक और बालक दोनों को उस भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य है। बालक अपनी अनुक्रिया विचारों के रूप में व्यक्त करता है। ये विचार शिक्षक द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में भी हो सकते हैं या कोई अन्य रूप भी हो सकता है। सम्प्रेषण कम आने वाले बाधक तत्वों को दूर करके शिक्षक बालक के विचारों को और अधिक प्रभावशाली बना सकता है।
विचारों के प्रकार
विचारों के दो प्रकार होते हैं
1. शाबदीक विचार ये विचार उन सूचनाओं से सम्बन्ध रखते है जो शाब्दिक रूप में भेजे जाते हैं। शब्दिक विचार निम्न प्रकार के होते हैं
१. मौखिक विचार जिनका आदान प्रदान बोलकर या सुन कर होता है वे मौखिक विचार होते हैं। जैसे बालकों का आपस में बात चीत करना।
२. दृष्टी विचार ऐसे विचार जिन्हे बालक देखकर समझता है वे दृष्टि विचार होते हैं। जैसे पोस्टर और चार्ट।
३. मौखिक दृष्टि विचार ऐसे विचार जिन्हे बालक देख और सुन तो सकता है परन्तु अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे सकता है। जैसे टीवी देखना आदि।
४. लिखित विचार ऐसे विचार जिन्हे बालक पढ़ कर अथवा लिख कर व्यक्त करता है और समझता है जैसे पत्र लिखना और समाचारपत्र पढ़ना
2. अशाब्दिक भाषा ऐसी भाषा जिसमे न तो बालक मौखिक रूप से कुछ बोलता सुनता है और न ही लिखता पढता ही है।
a) शारीरिक भाषा ऐसी भाषा जिसमे शरीर के भागों के द्वारा विचारों का आदान प्रदान होता है शारीरिक भाषा कहलाती हैं जैसे हाथ हिलना,ऊँगली दिखाना।
b) कूट भाषा कई बार विचारों को व्यक्त करने के लिए कई प्रकार के कूट प्रयोग में लाये जाते हैं जिनका कोई शाब्दिक अर्थ नहीं होता इनका अर्थ पहले से सुनिश्चित किया जाता है।
बालक के भाषा विकास और विचारों को प्रभावित करने वाले तत्व
1. लिंग भेद जन्म के पश्चात् प्रथम वर्ष बालकों में भाषा विकास अथवा विचारों में किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं पाया जाता परन्तु दूसरा वर्ष लगते ही यह अंतर स्पष्ट होने लगता है। लड़कियां जल्दी बोलने लगती हैं। भाषा विकास में लड़कियां हर प्रकार से लड़को से आगे होती हैं जैसे शब्द भंडार, वाक्यों की लम्बाई, उच्चारण और उनकी शुध्दता। काफी बड़ी अवस्था तक लड़कियां लड़कों से श्रेष्ठ बानी रहती हैं। परन्तु पूर्ण विकास की अवस्था तक अक्सर लड़के लड़कियों से आगे निकल जाते हैं।
2. बुद्धि विभिन्न परीक्षणों में पाया गया है की बुद्धि और भाषा विकास का भोत गहरा सम्बन्ध है। जिस बालक की तीव्र बुद्धि होती है वह जल्दी बोलना सीख जाता है तथा मंदबुद्धि बालक बोलना सीखने में तीन चार वर्ष तक भी पिछड़ जाता है। जो बालक प्रारंभिक वर्षों में भाषा में अधिक तीव्र होते हैं वे विचारों की अभिव्यक्ति करने में आगे होते हैं।
3. स्वस्थ्य जो बालक जीवन के प्रारंभिक वर्षों में अधिक बीमार होता है वह अन्य बालकों के संपर्क में काम अत है तथा उसके कहे उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है जिससे उसको कोई प्रेरणा नहीं मिलती और उसके भाषा विकास में अवरोध उत्पन हो जाता है। कुछ प्रकार के शारीरिक विकार जैसे तालु, कंठ दन्त, जबाड़ों आदि में गड़बड़ के कारण भी भाषा विकास में मंदी अाति है।
4. पारिवारिक सम्बन्ध बालक भाषा विकास पर परिवार से संबंधों का भोत प्रभाव पड़ता है जैसे यह अत्यंत महत्वपूर्ण है की माता पिता बालक के साथ कैसा व्यव्हार करते हैं वे उसको अत्यधिक् प्रेम करते है या उसे डांटते झिडकते रहते हैं। इसका प्रभाव सीधा बालकों के भाषा विकास पर पड़ता है। जिस परिवार में बालकों की संख्या अधिक होती है वंहा माता बालकों का उचित ध्यान नहीं रख पाते जिससे बालकों का भाषा विकास धीमा होता है। एक बालक का विकास जुड़वाँ बालकों की तुलना में अधिक तीव्र होता है क्योंकि जुड़वाँ बालकों को अनुकरण के कम अवसर मिलते हैं। सामान्य परिवार में पलने वाले बालक का भाषा विकास अनाथालय में पलने वाले बालक की तुलना में अधिक तीव्र होता है।
सामाजिक और आर्थिक स्थिति बालक के भाषा विकास पर उसके परिवार की आर्थिक व सामाजिक स्थिति का गहरा प्रभाव पड़ता है जैसे शिक्षित परिवार के बालकों का भाषा विकास अशिक्षित परिवार की तुलना में अधिक तीव्र होता है। तथा उनका शब्दकोष बड़ा और उनकी वाक्य रचना भी सूंदर होती है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. 'मन का मानचित्र' सम्बंधित है
1) बोध बढ़ने की तकनीक से
2) साहसिक कार्यों की क्रियायोजना से
3) मन का शीटर बनाने से
4) मन की क्रियाशीलता पर अनुसन्धान से
2. _______को एक अभिप्रेरित शिक्षण का संकेत माना जाता है
1)कक्षा में अधिकतम उपस्थिति
2) शिक्षक द्वारा दिया गया उपचारात्मक कार्य
3)विद्यार्थियों द्वारा प्रश्न पूछना
4) कक्षा में एकदम ख़ामोशी
3. अवधारणाओं का विकास मुख्य रूप से _______ का हिस्सा है।
1) बौद्धिक विकास
2) शारीरिक विकास
3)सामाजिक विकास
4)संवेगात्मक विकास
4. छोटे शिक्षार्थियों में कोण सा लक्षण पठन कठिनाई नहीं है?
1) पठन गति और प्रवाह में कठिनाई
2) शब्दों और विचारों को समझने में कठिनाई
3) सुसंगत वर्तनी में कठिनाई
4) वर्ण एवं शब्द पहचान में कठिनाई
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. 'मन का मानचित्र' सम्बंधित है
1) बोध बढ़ने की तकनीक से
2) साहसिक कार्यों की क्रियायोजना से
3) मन का शीटर बनाने से
4) मन की क्रियाशीलता पर अनुसन्धान से
2. _______को एक अभिप्रेरित शिक्षण का संकेत माना जाता है
1)कक्षा में अधिकतम उपस्थिति
2) शिक्षक द्वारा दिया गया उपचारात्मक कार्य
3)विद्यार्थियों द्वारा प्रश्न पूछना
4) कक्षा में एकदम ख़ामोशी
3. अवधारणाओं का विकास मुख्य रूप से _______ का हिस्सा है।
1) बौद्धिक विकास
2) शारीरिक विकास
3)सामाजिक विकास
4)संवेगात्मक विकास
4. छोटे शिक्षार्थियों में कोण सा लक्षण पठन कठिनाई नहीं है?
1) पठन गति और प्रवाह में कठिनाई
2) शब्दों और विचारों को समझने में कठिनाई
3) सुसंगत वर्तनी में कठिनाई
4) वर्ण एवं शब्द पहचान में कठिनाई
Thanks sar
ReplyDelete𝓨𝓸𝓾 𝓪𝓻𝓮 𝔀𝓮𝓵𝓬𝓸𝓶𝓮.
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