chapter 2 बाल विकास के सिद्धांत (Principles of Child Development)
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बाल विकास के सिद्धांत
(Principles of Child Development)
विकास परिवर्तन की वह अवस्था है जिसमे बालक भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था गुजरता है | विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नयी नयी विशेषता प्रकट होती हैं| विकास की प्रक्रिया कैसे होती है इस पर मनोवैज्ञानिकों ने तर्क दिए हैं जिन्हे विकास के सिद्धांत कहते हैं | ये सिद्धांत इस प्रकार हैं
1. समान प्रतिमान का सिद्धांत एक जाती के जीवों में विकास एक ही क्रम में ही पाया जाता है | और विकास का प्रतिमान भी समान होता है | यही सिंद्धांत इंसानो पर भी लागु होता है | गेसेल ने भी इस सिद्धांत का समर्थन करते हुए कहा है की "यद्यपि दो इंसान एक जैसे नहीं होते परन्तु सभी सामान्य बच्चों के विकास का क्रम समान है " चाहे वे दुनिया के किसी कोने में भी रहते हो इसी सिद्धान की पुष्टि हरलॉक महोदय ने भी की है |
2. सामान्य से विशिष्ट क्रियाओं का सिद्धांत बालक का विकास सामान्य क्रियाओ से विशिष्टता की और होता है | बालक कोई भी कार्य सामान्य ढंग से करता है फिर विशिष्टता डाल देता है | जैसे वह प्रारम्भ में वास्तु को देख कर हाथ पेअर मारता है जो की शैशवकाल होता है फिर बाद में वह केवल हाथ का विशेष प्रयोग करता है |
3. सतत विकास का सिद्धांत मानव के विकास का क्रम भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था तक स्तत चलता है | विकास की गति कभी तीव्र तो कभी धीरे हो सकती है | बालक में विकास कभी एक दम नहीं हो सकता| विकास सदैव धीरे धीरे होता है | उदाहरण के लिए बालक के दांतो को ही ले लीजिये 6 माह की आयु में ऐसे लगता है की दूध के दांत अचानक ही निकल आये हैं परन्तु ऐसा नहीं होता | वास्तविकता यह है की दांतों का विकास 5 माह की भ्रूणअवस्था से प्रारम्भ हो जाता है | किन्तु वे जन्म के 5 माह बाद दन्त निकलने शुरू हो जाते हैं |
4. परस्पर सम्बन्ध का सिद्धांत सिद्धांत से अभिप्राय है की बालक के विभिन्न गुण आपस में सम्बंधित होते हैं | एक गुण का विकास दूसरे गुणों के विकास को प्रभावित करता है | जैसे यदि किसी बालक की बुद्धि तीव्र है तो उसका सामाजिक और शारीरिक विकास भी तीव्र गति से होगा|
5. शरीर के विभिन्न अंगो में विकास की गति में भिन्नता सिद्धांत शरीर के सभी अंगो का विकास एक गति से नहीं होता| जैसे ६ वर्ष की उम्र तक दिमाग पूरा आकर प्राप्त कर लेता है परन्तु बाकि शरीर किशोरावस्था तक पूर्ण हो पाता है | बालक की सामान्य बूद्धि का विकास 14 -15 वर्ष की आयु तक हो जाता है परन्तु तर्क शक्ति का विकास धीरे धीरे होता है |
6. विकास की दिशा का सिद्धांत इसमें विकास सिर से पैर तक एक दिशा में होता है बालक का सिर पहले विकसित होता है और पैर बाद में विकसित होते हैं| जन्म के बाद बालक सबसे पहले सिर उठाने की कोशिश करता है फिर बैठता है और फिर अपने पैरो पर खड़ा होता है |
7. व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धांत पत्येक बालक के विकास की गति में एक व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है , किसी का विकास तीव्र गति से होता है तो किसी का धीरे होता है |
8. भिन्नता का सिद्धांत विकास क्रम एक समान हो सकता है परन्तु विकास की गति एक समान नहीं हो सकती शैशवावस्था तथा किशोरावस्था में विकास की गति तीव्र होती है जो की बाल्यावस्था में धीरे होती है | इसी प्रकार बालक और बालिकाओं में विकास की गति में अंतर पाया जाता है |
9. निरन्तर विकास का सिद्धांत विकास की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है यह अपने चरम तक पंहुचने तक कभी धीरे तो कभी तेज़ चलती रहती है |
10. एकीकरण का सिद्धांत इसके अनुसार बालक अपने अंगो को पहले पूरा चलता है फिर उसके भागों को फिर उन्हें एक साथ अलग अलग तरीके से चलता है | जैसे कि हाथ को ले लीजिये बालक पहले अपने हाथ को पूरा चलता है फिर वह उँगलियों को हिलता है फिर दोनों को एक साथ चलता है |
बल विकास से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत
(Other Important Principles Related with Child Development) पुनर्बलन सिद्धांत
पुनर्बलन सिद्धांत
इस सिद्धांत के प्रतिपादक डोलार्ड और मिलर है इनके अनुसार बच्चे का विकास होता है बच्चा अधिगम करता है| इसके अनुसार बालक कुछ न कुछ सीखता रहता है वह जो व्यहवार सीखता है उसे उस व्यव्हार को बेहतर बनाना पड़ता है| जैसे वह भूख मिटने के लिए स्तनपान सिख लेता है परन्तु इस से उसका अधिक समय तक काम नहीं चलता इसलिए उसे खाना सीखना पड़ता है जो की उसके लिए पहले से जटिल होता है | इनके अधिगम के चार अवयव हैं अंतर्नोद (अभिप्रेरणा ) संकेत (उद्दीपक) प्रत्युत्तर (स्वयं का व्यवहार)तथा पुनर्बलन (पुरुस्कार)
सामाजिक अधिगम सिद्धांत
इस सिद्धांत के प्रतिपादक बंदुरा और वाल्टर्स हैं | इस सिद्धांत में व्यव्हार को प्रभावित करने वाले कारको में वातारण सम्बन्धी कारको को महत्त्व दिया गया है वंशानुक्रम कारको को कोई महत्त्व नहीं दिया है |
विकास के सिद्धांतों का महत्त्व
विकास के सिद्धांत का ज्ञान प्रत्येक अध्यापक व् सामान्य व्यक्तिओ के लिए महत्वपूर्ण है इनका ज्ञान निम्न लिखित दृष्टि से अधिक है
१. इनके ज्ञान से हमे यह ज्ञान प्राप्त होता है की बालको से कब किस व्यव्हार की अपेक्षा करनी चाहिए | या तो हम उनसे बहुत बधिक गुणों की अपेक्षा करने लगते हैं या उन्हें निरर्थक समझने लगते हैं दोनों ही स्थितियां ही हानिकारक हैं |
२. विकास के सिद्धांतों से हमे पता चलता है की बालकों को कुछ न कुछ सिखने की प्रेरणा देनी चाहिए | इसके ज्ञान से बालकों को विकास के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है | जैसे की जब बालक बोलना सीखता है तो उसे अभ्यास करवाना चाहिए |
३. इन सिद्धांतों के ज्ञान से शिक्षक को विद्यालयों में क्रियाओं के आयोजन में सहायता प्राप्त होती है |
वस्तुनिष्ट प्रश्न
1. निचली कक्षाओं में शिक्षण की खेल पध्दति आधारित है
१. शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों के सिद्धांतों पर
२. शिक्षण पध्दतियों के सिद्धांतों पर
३. विकास एवं वृद्धि के मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित
४. शिक्षण के समाजशास्त्रीय सिद्धांत पर
2. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा 2005 (ncf -2005 ) के आधारभूत सिद्वांतो में निम्न में से कौन सा भाग सम्मिलित नहीं है ?
१ अच्छी बाह्य परीक्षाओं का आयोजन करना
२ रटने को महत्व प्रदान न करना
३. पुस्तकों से इत्र ज्ञान प्राप्त करना
४. ज्ञान को वास्तविक जीवन से जोड़ना
3.सामान्य परिपक्वन से पहले प्रशिक्षित करना प्रायः
१. सामान्य कौशलों के निष्पादन के संदर्भ में बहुत लोभकरि होता है
२. कुल मिलकर हानिकारक होता हह
३ दीर्घकालिक दृष्टि से लाभकारी होता है बी
४ लाभःकारी हो या हानिकारक यह इस बात पर निर्भर करता है की प्रशिक्षण में किस प्रकार की विधि का प्रयोग किया गया है
4 बच्चे के विकास के शिरस्थ सिधांत के अनुसार निम्न में से सत्य कथन है ?
१ विकास सिर से पैर की और होता है
२ विकास पैर से सिर की और होता है
३ विकास मधयभाग से परिधि की और होता है
४ उपरोक्त में से कोई नहीं
5 किशोरावस्था के दौरान आत्मकेंद्रित सज्ञानों का विकास इस विश्वास के साथ की अन्य लोगों के ध्यान केंद्र में कहलाता है
१. अस्मिता निर्माण
२. अस्मिता संकट
३. किशोर आत्मकेंद्रिता
४. भूमिका भ्रान्ति
6. एक बालक सिद्धांत एवं विशुद्ध संभाव्यता को अमूर्त रूप में व्यवहृत कर सकने में सक्षम है उसमे तार्किक एव. अमूर्त विचार की सरांरचनाएँ हैं एवं वह एक चिंतन कर सकता है वह किस अवस्था से गुजर रहा है
१. मूर्त संक्रियाओं की अवस्था
२. पूर्व संक्रियाओं की अवस्था
३.आकारी संक्रियाओं की अवस्था से
४. संवेदी पेशीय अवस्था से है
7. निम्नलिखित कथनो में से मानव विकास के सम्बन्ध में कोण सा कथन सत्य है
१. सामान्य से सामान्य तक
२. सामान्य से विशिष्ट तक
३. विशिष्ट से सामान्य की और
४. विशिष्ट से विशिष्ट तक
8. बच्चा किस अवस्था में वातावरण से प्रभावित होने लगता है
१. बाल्याववस्था से
२. किशोरावस्था से
३. शैशवावस्था
४. प्रौढ़ावस्था
9.
बाल विकास के सिद्धांत
(Principles of Child Development)
विकास परिवर्तन की वह अवस्था है जिसमे बालक भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था गुजरता है | विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नयी नयी विशेषता प्रकट होती हैं| विकास की प्रक्रिया कैसे होती है इस पर मनोवैज्ञानिकों ने तर्क दिए हैं जिन्हे विकास के सिद्धांत कहते हैं | ये सिद्धांत इस प्रकार हैं
1. समान प्रतिमान का सिद्धांत एक जाती के जीवों में विकास एक ही क्रम में ही पाया जाता है | और विकास का प्रतिमान भी समान होता है | यही सिंद्धांत इंसानो पर भी लागु होता है | गेसेल ने भी इस सिद्धांत का समर्थन करते हुए कहा है की "यद्यपि दो इंसान एक जैसे नहीं होते परन्तु सभी सामान्य बच्चों के विकास का क्रम समान है " चाहे वे दुनिया के किसी कोने में भी रहते हो इसी सिद्धान की पुष्टि हरलॉक महोदय ने भी की है |
2. सामान्य से विशिष्ट क्रियाओं का सिद्धांत बालक का विकास सामान्य क्रियाओ से विशिष्टता की और होता है | बालक कोई भी कार्य सामान्य ढंग से करता है फिर विशिष्टता डाल देता है | जैसे वह प्रारम्भ में वास्तु को देख कर हाथ पेअर मारता है जो की शैशवकाल होता है फिर बाद में वह केवल हाथ का विशेष प्रयोग करता है |
3. सतत विकास का सिद्धांत मानव के विकास का क्रम भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था तक स्तत चलता है | विकास की गति कभी तीव्र तो कभी धीरे हो सकती है | बालक में विकास कभी एक दम नहीं हो सकता| विकास सदैव धीरे धीरे होता है | उदाहरण के लिए बालक के दांतो को ही ले लीजिये 6 माह की आयु में ऐसे लगता है की दूध के दांत अचानक ही निकल आये हैं परन्तु ऐसा नहीं होता | वास्तविकता यह है की दांतों का विकास 5 माह की भ्रूणअवस्था से प्रारम्भ हो जाता है | किन्तु वे जन्म के 5 माह बाद दन्त निकलने शुरू हो जाते हैं |
4. परस्पर सम्बन्ध का सिद्धांत सिद्धांत से अभिप्राय है की बालक के विभिन्न गुण आपस में सम्बंधित होते हैं | एक गुण का विकास दूसरे गुणों के विकास को प्रभावित करता है | जैसे यदि किसी बालक की बुद्धि तीव्र है तो उसका सामाजिक और शारीरिक विकास भी तीव्र गति से होगा|
5. शरीर के विभिन्न अंगो में विकास की गति में भिन्नता सिद्धांत शरीर के सभी अंगो का विकास एक गति से नहीं होता| जैसे ६ वर्ष की उम्र तक दिमाग पूरा आकर प्राप्त कर लेता है परन्तु बाकि शरीर किशोरावस्था तक पूर्ण हो पाता है | बालक की सामान्य बूद्धि का विकास 14 -15 वर्ष की आयु तक हो जाता है परन्तु तर्क शक्ति का विकास धीरे धीरे होता है |
6. विकास की दिशा का सिद्धांत इसमें विकास सिर से पैर तक एक दिशा में होता है बालक का सिर पहले विकसित होता है और पैर बाद में विकसित होते हैं| जन्म के बाद बालक सबसे पहले सिर उठाने की कोशिश करता है फिर बैठता है और फिर अपने पैरो पर खड़ा होता है |
7. व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धांत पत्येक बालक के विकास की गति में एक व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है , किसी का विकास तीव्र गति से होता है तो किसी का धीरे होता है |
8. भिन्नता का सिद्धांत विकास क्रम एक समान हो सकता है परन्तु विकास की गति एक समान नहीं हो सकती शैशवावस्था तथा किशोरावस्था में विकास की गति तीव्र होती है जो की बाल्यावस्था में धीरे होती है | इसी प्रकार बालक और बालिकाओं में विकास की गति में अंतर पाया जाता है |
9. निरन्तर विकास का सिद्धांत विकास की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है यह अपने चरम तक पंहुचने तक कभी धीरे तो कभी तेज़ चलती रहती है |
10. एकीकरण का सिद्धांत इसके अनुसार बालक अपने अंगो को पहले पूरा चलता है फिर उसके भागों को फिर उन्हें एक साथ अलग अलग तरीके से चलता है | जैसे कि हाथ को ले लीजिये बालक पहले अपने हाथ को पूरा चलता है फिर वह उँगलियों को हिलता है फिर दोनों को एक साथ चलता है |
बल विकास से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत
(Other Important Principles Related with Child Development) पुनर्बलन सिद्धांत
पुनर्बलन सिद्धांत
इस सिद्धांत के प्रतिपादक डोलार्ड और मिलर है इनके अनुसार बच्चे का विकास होता है बच्चा अधिगम करता है| इसके अनुसार बालक कुछ न कुछ सीखता रहता है वह जो व्यहवार सीखता है उसे उस व्यव्हार को बेहतर बनाना पड़ता है| जैसे वह भूख मिटने के लिए स्तनपान सिख लेता है परन्तु इस से उसका अधिक समय तक काम नहीं चलता इसलिए उसे खाना सीखना पड़ता है जो की उसके लिए पहले से जटिल होता है | इनके अधिगम के चार अवयव हैं अंतर्नोद (अभिप्रेरणा ) संकेत (उद्दीपक) प्रत्युत्तर (स्वयं का व्यवहार)तथा पुनर्बलन (पुरुस्कार)
सामाजिक अधिगम सिद्धांत
इस सिद्धांत के प्रतिपादक बंदुरा और वाल्टर्स हैं | इस सिद्धांत में व्यव्हार को प्रभावित करने वाले कारको में वातारण सम्बन्धी कारको को महत्त्व दिया गया है वंशानुक्रम कारको को कोई महत्त्व नहीं दिया है |
विकास के सिद्धांतों का महत्त्व
विकास के सिद्धांत का ज्ञान प्रत्येक अध्यापक व् सामान्य व्यक्तिओ के लिए महत्वपूर्ण है इनका ज्ञान निम्न लिखित दृष्टि से अधिक है
१. इनके ज्ञान से हमे यह ज्ञान प्राप्त होता है की बालको से कब किस व्यव्हार की अपेक्षा करनी चाहिए | या तो हम उनसे बहुत बधिक गुणों की अपेक्षा करने लगते हैं या उन्हें निरर्थक समझने लगते हैं दोनों ही स्थितियां ही हानिकारक हैं |
२. विकास के सिद्धांतों से हमे पता चलता है की बालकों को कुछ न कुछ सिखने की प्रेरणा देनी चाहिए | इसके ज्ञान से बालकों को विकास के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है | जैसे की जब बालक बोलना सीखता है तो उसे अभ्यास करवाना चाहिए |
३. इन सिद्धांतों के ज्ञान से शिक्षक को विद्यालयों में क्रियाओं के आयोजन में सहायता प्राप्त होती है |
वस्तुनिष्ट प्रश्न
1. निचली कक्षाओं में शिक्षण की खेल पध्दति आधारित है
१. शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों के सिद्धांतों पर
२. शिक्षण पध्दतियों के सिद्धांतों पर
३. विकास एवं वृद्धि के मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित
४. शिक्षण के समाजशास्त्रीय सिद्धांत पर
2. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा 2005 (ncf -2005 ) के आधारभूत सिद्वांतो में निम्न में से कौन सा भाग सम्मिलित नहीं है ?
१ अच्छी बाह्य परीक्षाओं का आयोजन करना
२ रटने को महत्व प्रदान न करना
३. पुस्तकों से इत्र ज्ञान प्राप्त करना
४. ज्ञान को वास्तविक जीवन से जोड़ना
3.सामान्य परिपक्वन से पहले प्रशिक्षित करना प्रायः
१. सामान्य कौशलों के निष्पादन के संदर्भ में बहुत लोभकरि होता है
२. कुल मिलकर हानिकारक होता हह
३ दीर्घकालिक दृष्टि से लाभकारी होता है बी
४ लाभःकारी हो या हानिकारक यह इस बात पर निर्भर करता है की प्रशिक्षण में किस प्रकार की विधि का प्रयोग किया गया है
4 बच्चे के विकास के शिरस्थ सिधांत के अनुसार निम्न में से सत्य कथन है ?
१ विकास सिर से पैर की और होता है
२ विकास पैर से सिर की और होता है
३ विकास मधयभाग से परिधि की और होता है
४ उपरोक्त में से कोई नहीं
5 किशोरावस्था के दौरान आत्मकेंद्रित सज्ञानों का विकास इस विश्वास के साथ की अन्य लोगों के ध्यान केंद्र में कहलाता है
१. अस्मिता निर्माण
२. अस्मिता संकट
३. किशोर आत्मकेंद्रिता
४. भूमिका भ्रान्ति
6. एक बालक सिद्धांत एवं विशुद्ध संभाव्यता को अमूर्त रूप में व्यवहृत कर सकने में सक्षम है उसमे तार्किक एव. अमूर्त विचार की सरांरचनाएँ हैं एवं वह एक चिंतन कर सकता है वह किस अवस्था से गुजर रहा है
१. मूर्त संक्रियाओं की अवस्था
२. पूर्व संक्रियाओं की अवस्था
३.आकारी संक्रियाओं की अवस्था से
४. संवेदी पेशीय अवस्था से है
7. निम्नलिखित कथनो में से मानव विकास के सम्बन्ध में कोण सा कथन सत्य है
१. सामान्य से सामान्य तक
२. सामान्य से विशिष्ट तक
३. विशिष्ट से सामान्य की और
४. विशिष्ट से विशिष्ट तक
8. बच्चा किस अवस्था में वातावरण से प्रभावित होने लगता है
१. बाल्याववस्था से
२. किशोरावस्था से
३. शैशवावस्था
४. प्रौढ़ावस्था
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