chapter - 9 समाज निर्माण में लैंगिक मुद्दे (Gender Issues in Social Construction)

                    समाज निर्माण में लैंगिक मुद्दे 
       (Gender Issues in Social Construction)
प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में पूर्ण व्यक्तित्व है। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से अलग है और यही उसके जीवन का आधारभूत गुण है। एक ही परिवार के बच्चों में भी यह भेद देखा गया है.। मनुष्य के विकास में विभिन्न बुद्धिजीवियों तथा शासकों ने इन भेड़ों के आधार पर व्यास्थाबद्ध नियम बनाने की कोशिश की। 
समाज निर्माण में लिंग की भूमिका 

समाज को ध्यान पूर्वक देखने से पता चलता है कि सामाजिक और आर्थिक आधार पर लोगों की योग्यताओं में अनेक प्रकार के भेद पाए जाते हैं। संपन्न परिवारों में मंद बुद्धि बालक कम देखे गए हैं।वैसे इस प्रकार के बालक हर प्रकार के परिवार में पाए जाते हैं। आर्थिक स्तर को मापते समय इसे बौद्धिक सम्पन्नता से भी जोड़ा जा सकता है।  इस विषय पर हमारे मन में अनेक प्रश्न उठते हैं जैसे कि क्या अमीर इसलिए आमीर हैं क्योंकि वे पहले से अमीर हैं और गरीब इसलिए गरीब हैं क्योंकि वे पहले से गरीब हैं। मनोवैज्ञानिक मानते हैं की निम्न आय वाले परिवार के बालकों को उच्च आय वाले परिवार के बालको की तुलना में हीन दृष्टि से देखा जाता है और उनके साथ भेदभाव किया जाता है। उनमे सामान्य परिवारों की तुलना में सांस्कृतिक पिछड़ापन अधिक होता है। यह भेद कैसा भी हो अनुवांशिक या वातावरणीय एक अध्यापक होने के नाते आपका कर्तव्य है की आप शिक्षण की हर परिस्थिति में इस समस्या से समझदारी से निपटें। ऐसे बच्चे अन्य बच्चों में सामान्य दीखते हैं परन्तु प्रत्येक में पारिवारिक पृष्टभूमि गुप्त रूप से सक्रिय होती है। बालकों के व्यवहार का सदैव ध्यान रखना चाहिए इनकी सांवेगिक कठिनाइयों का कारण इनकी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि हो सकती है।

पूर्वाग्रह और रूढ़िबद्धता के कारण लैंगिक भेदभाव 
सामान्यतः पूर्वाग्रह एवं रूढ़िबद्धता के कारण लैंगिक भेदभाव दिखाई देता है। जब किसी व्यक्ति अथवा जाती के बारे में कोई काल्पनिक विचारधारा बन जाती है जिसका सत्यता से कोई सम्बन्ध नहीं होता तो उसे रूढ़िबद्धता कहते हैं। उदाहरण के लिए भारत की ज्यादातर लड़कियां घर का काम करती हैं तो की यह सोचे कि लड़कियां केवल घर का काम ही कर सकती हैं तो यह रूढ़िबद्धता है। अगर कोई शिक्षक विद्यालय में केवल लड़कियों से चाय बनवाए तो यह उसकी रूढ़िबद्धता है।

पूर्वाग्रह का अर्थ पक्षपात है इसमें अपने पहले से प्रचलित विचारों के आधार पर किसी से पक्षपात किया जाता है। जैसे लैंगिक भेदभाव का एक कारण पूर्वाग्रह भी है लैंगिक पूर्वाग्रह के कारण ही यह मान्यता पूर्व से प्रचलित है कि लड़के ही माता पिता की बुढ़ापे में सेवा करते हैं। विद्यालय में किसी कार्यक्रम में नृत्य में लड़कियों को वरीयता देना भी लैंगिक पूर्वाग्रह का उदाहरण है।

लैंगिक भेदभाव 
मनोविज्ञानिक हमेशा इस  अध्ययन में लगे रहते हैं की स्त्री पुरुष की मानसिक व शारीरिक योग्यताओं में इतना अंतर क्यों होता है। जीवन के शुरुवाती समय में लड़किया लड़कों से अधिक तीव्र विकास करती हैं, उनमे भाषा का गुण तथा स्मरण शक्ति भी अधिक हैं परन्तु विकास प्रक्रिया पूर्ण होने तक लड़के लड़कियों से आगे निकल जाते है इसका कारण जानने की मनोवैज्ञानिक समय समय पर कोशिश करते हैं। इसका जो एक सबसे महत्वपूर्ण कारण समझ अाता है वह है  का भेदभाव। इससे यह निष्कर्ष निकलता है की शिक्षण के दौरान छात्र व छात्राओं में भेद भाव नहीं करना चाहिए उन्हें बराबर के अवसर देने चाहिए।  

आयु के विषय में लैंगिक मुद्दे 
व्यक्तियों में विकास के अंतर का एक मुख्या कारण आयु भी होती है। आयु और विकास के साथ साथ बालकों में कुछ स्पष्ट भेद  दिखने लगते हैं जैसे ज्यों ज्यों अवस्था का विकास होता है त्यों त्यों व्यक्ति में वातावरण की जटिलताओं का समाधान करने की क्षमताओं का विकास होता है। अवस्था के विकास के साथ साथ बौद्धिक विकास भी होने लगता है। बालकों का अनुभव उनके बौद्धिक विकास को स्पष्ट रूप से प्रभावित करता है। जिस बालक की अधिक आयु होगी उसके पास अनुभव भी अधिक होता है जिससे उसके और उससे काम आयु के बालक के  में भेद स्पष्ट दिखाई देता है।  यदि हम तुलनात्मक दृष्टि से देखे तो प्रौढ़ावस्था की तुलना में बाल्यावस्था में विकास की दर अधिक होती है इसलिए बाल्यावस्था में यह भेद अधिक देखने को मिलता है अतः शिक्षक को चाहिए की वह इन भेद को समझे और और व्यस्थित ढंग से शिक्षण का कार्य पूर्ण करे।

व्यक्तित्व के विषय में लैंगिक भेद 
बालकों के व्यक्तित्व के गठन में जो अंतर होता है उसके कारण ही उनके आचरण, व्यवहार, तथा विकास में भी अंतर आ जाता है। इन्ही अंतर के कारण ही बालक उपलब्धियां प्राप्त करने के लिए अपने आचरण के अनुरूप मार्ग खोजता है। सभी बालकों का सवभाव अलग होता है जैसे कुछ बालक आक्रामक होते हैं और कुछ विनम्र होते हैं। कुछ अंतर्मुखी और कुछ बहिर्मुखी होते हैं। उसके स्वभाव और आचरण के ये गुण अनेक प्रकार से उसके विकास तथा उपलब्धियों को प्रभावित करते हैं। अध्यापक को चाहिए की वह बालक की इन भिन्नताओं को समझे और उसे अलग व्यक्तित्व समझ कर उसके विकास में सहायता करे।  

जाति के विषय में लैंगिक मुद्दे 
विभिन्न जातियों के समूहों का अध्ययन करने से उनमे कुछ विभिन्नताओं का पता चलता है जैसे निर्णय शक्ति तथा यथा तर्क आदि। इस प्रकार के अध्ययन से पता चलता है कि अमिश्रित जातियों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करना कठिन है। जब हम एक ही स्थान पर रहने वाली जातियों का अध्ययन करते है तो उनपर सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव इतना अधिक होता है कि जाति सम्बंधित गुणों को अलग करना कठिन हो जाता है। 

शैक्षिक अभ्यास 
हमारे समाज में लड़कियों को लड़को से अलग समझ कर उन्हें घर के कामों में लगा दिया जाता है। कुछ अध्यापक भी लड़कियों पर अनवांछित टिप्पणी करते हैं। जो की शिक्षक निति के अनुसार गलत है। शिक्षकों की यह धरना भी होती है कि लड़कियों को ऐसी शिक्षा दी जाये जी उन्हें गृहस्थ संभालने में सहायता करे। यह विचार व्यक्तित्व की भिन्नता सम्बंधित तथ्यों की अवहेलना करता है तथा लड़के तथा लड़कियों को समान कौशल सीखने में बढ़ा उत्त्पन करता है। कुछ क्षेत्रों में बालक और बालिकाओं की योग्यताएं अलग होती हैं और इन्ही क्षेत्रों में वे एक दूसरे से आगे भी निकल जाते हैं। इसलिए जन्मजात योग्यताओं के अधिकतम विकास के लिए शिक्षण निति को पूर्ण रूप से अपनाने की आवश्यकता है तथा आभाव वाले क्षेत्रों को प्रबल करने के लिए विशेष पध्दतियाँ अपनाने की आवश्यकता है। शिक्षक होने के नाते आपको चाहिए की आप लिंग बढ़ के विरुद्ध साहसिक कदम उठाये तथा साथ साथ लड़को तथा लड़कियों में पाए जाने वाले भेदों को पहचानना होगा और स्वीकार करना होगा। लड़कियों के प्रति समाज के दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है। जिसका पता उनके प्रति किया जाने वाला व्यवहार तथा उनको दी जाने वाली पाठ्य सामग्री से लगता है। निम्न समुदाय में लड़कियों के साथ और भी अधिक भेद भाव किया जाता है। इन समुदायों के  लोग शिक्षा पर किये गए खर्च से अधिक उनके विवाह पर किये गए खर्च को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। अनेक सरकारी योजनाएं चलने के बावजूद बहुत सी लड़कियां स्कूल नहीं पंहुच पाती। शिक्षक को चाहिए कि वह इन समस्यों पर चिंतन करे।

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
1. 'पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान होते हैं यह कथन                            (ctet 2011)
a) सही हो सकता है
b)लैंगिक पूर्वाग्रह को प्रदर्शित करता है 
c)बुद्धि के भिन्न पक्षों के लिए सही है
d)सही है

2. एक शिक्षक को साधन संपन्न होना चाहिए इसका अर्थ है।                         (utet2011)
a)उनके पास पर्याप्त धन  होना चाहिए की उन्हें शिक्षण न करना पड़े।
b)उनका अधिकारीयों से संपर्क होना चाहिए।
c)उनको विद्यार्थियों की समस्याओं को हल करने के लिए उचित ज्ञान होना चाहिए।
d)विद्यार्थियों में उनकी प्रसद्धि हो

3.निम्न में से किनसे कथन सत्य है?                                                            (utet-2011)
a)लड़के अधिक बुद्धिमान होते हैं।
b)लड़कियां अधिक बुद्धिमान होती हैं।
c)बुद्धि का लिंग के साथ सम्बन्ध नहीं होता। 
d)सामान्यतः लड़के लड़कियों से अधिक बुद्धिमान होते हैं।

4. छात्राओं पर लैंगिक भेदभाव का प्रभाव पड़ता है उनके                                 
a)सामाजिक उत्थान पर
b)सामाजिक दृष्टिकोण पर
c)शैक्षणिक योग्यता पर
d)ये सभी 



   

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