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chapter-10 व्यक्तिगत विभिन्नताएं (Individual differences)

व्यक्तिगत विभिन्नताएं (Individual differences) व्यक्तिगत विभिन्नताओं का अर्थ एवं परिभाषा  पृकृति का नियम है की समस्त संसार में कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हो सकते वे किसी न किसी प्रकार एक दूसरे से भिन्न होते ही हैं। यंहा तक की जुड़वाँ बच्चे भी एक जैसी शक्ल होने के बावजूद भी एक दूसरे से काफी भिन्न होते हैं यह व्यक्तिगत भिन्नता पशुओं में भी पायी जाती है। रंग, लम्बाई, बुद्धि आदि भिन्नताओं को स्पष्ट करने में सहायता करते हैं।  पुराने जमाने से ही बालक की आयु के अनुसार ही शिक्षा दी जाती है।  छोटी आयु के बालको को सरल चीजें सिखाई जाती है और बड़े होने पर कठिन बातें सिखाई जाती है। आजकल व्यक्तिगत विभिन्नताओं का बड़ा महत्त्व है इसका सबसे पहला प्रयोग फ़्रांसिसी मनोवैज्ञानिक गाल्टन महोदय ने किया। प्रमुख परिभाषाएं इस परककर हैं स्किनर के मतानुसार "व्यक्तिगत विभिन्नताओं से हमारा तातपर्य व्यक्तित्व के उन पहलुओं से है जिनका मापन व मूल्याङ्कन किया जा सकता है। " टायलर के अनुसार "शरीर के रूप, रंग, आकार, कार्य, गति, ज्ञान, रूचि अभिरुचि आदि लक्षणों में पायी जाने वाली विभिन्नताओं को व्य

chapter - 9 समाज निर्माण में लैंगिक मुद्दे (Gender Issues in Social Construction)

click for भागवत गीता pdf file                      समाज निर्माण में लैंगिक मुद्दे         (Gender Issues in Social Construction) प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में पूर्ण व्यक्तित्व है। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से अलग है और यही उसके जीवन का आधारभूत गुण है। एक ही परिवार के बच्चों में भी यह भेद देखा गया है.। मनुष्य के विकास में विभिन्न बुद्धिजीवियों तथा शासकों ने इन भेड़ों के आधार पर व्यास्थाबद्ध नियम बनाने की कोशिश की।  समाज निर्माण में लिंग की भूमिका  समाज को ध्यान पूर्वक देखने से पता चलता है कि सामाजिक और आर्थिक आधार पर लोगों की योग्यताओं में अनेक प्रकार के भेद पाए जाते हैं। संपन्न परिवारों में मंद बुद्धि बालक कम देखे गए हैं।वैसे इस प्रकार के बालक हर प्रकार के परिवार में पाए जाते हैं। आर्थिक स्तर को मापते समय इसे बौद्धिक सम्पन्नता से भी जोड़ा जा सकता है।  इस विषय पर हमारे मन में अनेक प्रश्न उठते हैं जैसे कि क्या अमीर इसलिए आमीर हैं क्योंकि वे पहले से अमीर हैं और गरीब इसलिए गरीब हैं क्योंकि वे पहले से गरीब हैं। मनोवैज्ञानिक मानते हैं की निम्न आय वाले परिवार के बालकों को उच्च आय वाले

Chapter - 8 भाषा और विचार (Language and Thought)

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Chapter - 8 भाषा और विचार (Language and Thought) भाषा क्या है ? भाषा विचारो को अभिव्यक्त करने का मानव द्वारा निर्मित साधन है।  यह कोई अनुवांशिक क्रिया नहीं है यह बालक द्वारा अनुकरण एवं प्रयासों द्वारा ग्रहण की जाती है। विश्वकोष के अनुसार भाषा ध्वनि, प्रतीकों अथवा संकेतों की ऐसी व्यस्था है जिससे एक समूह के लोग आपस में विचारों का आदान प्रदान कर सकते हैं। htet786.blogspot.com अभिलक्षण  भाषा विचार व्यक्त करने का एक सांकेतिक साधन है। भाषा विचारों से सम्बंधित है। भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है यह एक अर्जित संपत्ति है भाषा की कला अनुकरण द्वारा प्राप्त होती है। हर भाषा की अपमी सीमा होती है और अलग सरंचना होती है। भाषा सभ्यता तथा संस्कृति का हिस्सा है। भाषा शिक्षण के सिद्धांत 1. भाषा मिश्रण का सिद्धांत बालक जिस प्रकार के भी सामाजिक वातावरण में रहता है वह वंहा से स्वयं ही सीखना शुरू कर देता है। आरम्भ में बालक अनुकरण करके ध्वनियों को बोलना सीखता है। फिर बड़ों की बातों को समझ कर उनसे बात करने की कोशिश करता है। फिर वह उन करियों को करता है जिनमे उनकी रूचि होती है। मिश्रण के इस समय

chapter 7 बुद्धि तथा बहुआयामी बुद्धी (Construct of Intelligence and Multi-Dimensional Intelligence)

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बुद्धि तथा बहुआयामी बुद्धी (Construct of Intelligence and Multi-Dimensional Intelligence)     बुद्धि का सवरूप : अर्थ और परिभाषा   बुद्धि शब्द प्राचीन काल से व्यक्ति की तत्परता  समस्या समाधान की क्षमताओं के सन्दर्भ में प्रयोग होता है। सभी व्यक्ति समान योग्य नहीं होते। बौद्धिक योग्यता ही उनके आसमान होने का प्रमुख कारन है।  प्रत्येक मनोवैज्ञानिक का बुद्धि के सन्दर्भ में अलग  मत है। वुडवर्थ के मतानुसार बुद्धि कार्य करने की विधि है टर्मन के अनुसार बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है। वुडरो के अनुसार बुद्धि ज्ञान का अर्जन करने की क्षमता है। डियरबॉर्न के अनुसार बुद्धि सिखने या अनुभव से लाभ उठाने की क्षमता है। हेनमान के अनुसार ज्ञान में दो तत्व होते है, ज्ञान की क्षमता और निहित ज्ञान। बीने के अनुसार बुद्धि इन चार शब्दों में निहित है ज्ञान, अविष्कार, निर्देश, और आलोचना। थार्नडाइक के मतानुसार सत्य या तथ्य के दृष्टिकोण से उत्तम प्रतिक्रियाओं की शक्ति को ही बुद्धि कहते हैं। पिंटनर के अनुसार नई परिस्थितियों में सामंजस्य बनाने की व्यक्ति की योग्यता को ही ब

chapter 6 बाल केंद्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा (Child Centered and Progressive Education)

HOME बाल केंद्रित एवं प्रगतिशील शिक्षा (Child Centered and Progressive Education) बालकेन्द्रित शिक्षा शिक्षा बालक की मूल प्रवृत्तियों प्रेरणाओं और संवेगों पर आधारित होनी चाहिए ताकि उनकी शिक्षा को  नयी दिशा दी जा सके यदि उसमे कोई गलती है तो उसे ठीक किया जा सके इसके अंतर्गत बच्चों का शारीरिक व् मानसिक योग्यताओं का अध्ययन करके उनके आधार पर बच्चों की विकास में मदद करते हैं। जैसे  यदि कोई बच्चा मानसिक रूप से या शारीरिक से कमजोर है या आपराधिक गतिविधियों से जुड़ा है तो पहले उसकी उस कमी को दूर किया जाता है। कुछ शिक्षक मनोवैज्ञानिक ज्ञान के आभाव में मार पीट कर ठीक करने की कोशिश करते हैं परन्तु यह स्थिति को और खराब कर देगा। भारतीय शिक्षाविद गिजु भाई ने बाल केंद्रित शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उन्होंने इसके लिए कई प्रसिद्द पुस्तकों की रचना की है जो बाल मनोविज्ञान शिक्षा शास्त्र एवं किशोर साहित्य से सम्बंधित हैं। बालकेन्द्रित शिक्षा की मुख्य विशेषताएं हैं - बालकों को समझना  किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए शिक्षक को बालक के मनोविज्ञान की पूरी जानकारी होनी चाहिए। इसके अभाव में वह

chapter 5 पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत (Principle of Piaget, Kohlberg and Vygostky)

पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत (Principle of Piaget, Kohlberg and Vygostky) विकास की अवस्थाओं के  सिद्धांत(Principle of Development Stages) मानव विकास की वृद्धि के कई आयाम होते हैं ।   विकास की अलग अलग अवस्थाओं में बालक में विशेष गुण देखने को मिलते हैं। इनके आधार पर मनोवैज्ञानिक  अवस्थाओं के अनेक सिद्धांत बनाते हैं। विकास की अवस्थाओं से सम्बंधित सिद्धांतों में पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत विशेष रूप से प्रसिद्द हैं।   जीन प्याजे के विकास की अवस्थाओं के सिद्धांत  जीन प्याजै स्विट्ज़रलैंड के एक प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक थे । बच्चों में बुद्धि का विकास कैसे होता है यह जानने के लिए उन्होंने अपने ही बच्चो पर खोज की। जैसे जैसे वे बड़े हुए उनकी मानसिक विकास की क्रियाओं का बारीकी से अध्ययन किया गया। इन अध्ययनों के अनुसार जिन सिद्धांतों को बताया गया है वे पियाजे के मानसिक विकास  के नाम से जाने जाते हैं। संज्ञानात्मक विकास का अभिप्राय बच्चों की  एकत्रित करने की क्रिया से है। इसमें भाषा चिंतन समरण शक्ति और तर्क शामिल हैं।   पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार ज

Chapter 4 समाजीकरण की प्रक्रिया (Process of Socialization)

समाजीकरण की प्रक्रिया  (Process of Socialization) http://htet786.blogspot.com/ समाजीकरण की प्रक्रिया तब शुरू हो जाती है जब अबोद्ध बालक का अपने माता पिता , परिवार के सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आना शुरू हो जाता है और फिर यह कार्य जीवन भर चलता है | बालक जैसे जैसे बड़ा होता है वैसे वैसे वह सहयोग सहानुभूति तथा सामाजिक मूल्यों एवं नियमों को अच्छी तरह घ्राण कर लेता है | किशोरावस्था के अंत तक बालक में सर्वाधिक परिपक्वता का विकास होता है | इस अवधि में सामाजिक चेतना को प्राप्त करता है , अधिक से अधिक मित्र बनाता है तथा समूह बनता है।   विभिन्न अवस्थाओं में समाजीकरण की प्रक्रिया  जन्म के बाद एक बालक का सामाजिक विकास भिन्न भिन्न अवस्थाओं में भिन्न भिन्न तरीकों से होता है।  जनका वर्णन निम्नलिखित है  1. शैवावस्था में सामाजिक विकास  इस काल में सामाजिक विकास की विशेषताएं इस प्रकार हैं १. स्वयं केंद्रित बालक २. माता पिता पर आश्रित बालक ३. सामाजिक खेल का विकास ४. स्पर्धा की भावना ५. मैत्री और सहयोग ६. सामाजिक स्वीकृति हरलॉक ने पहले दो वर्ष में होने वाले सामाजिक विकास को नि